शंख का हमारे धर्म में बड़ा महत्तव होता है. शंख मुख्य रूप से एक समुद्री जीव का ढांचा होता है. पौराणिक रूप से शंख की उत्पत्ति समुद्र से मानी जाती है और कहीं कहीं पर इसको लक्ष्मी जी का भाई भी मानते हैं. कहते हैं जहाँ शंख होता है वहां लक्ष्मी जरूर होती हैं. मंगल कार्यों के अवसर पर और धार्मिक उत्सवों में भी इसको बजाना शुभ माना जाता है.
घर में पूजा-वेदी पर शंख की स्थापना की जाती है. हमेशा ध्यान रहे कि शंख को दीपावली, होली, महाशिवरात्रि, नवरात्र, रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य नक्षत्र आदि शुभ मुहूर्त में स्थापित किया जाना चाहिए
वैज्ञानिक रूप से शंख का क्या महत्व है?
विज्ञान के अनुसार शंख की ध्वनि महत्वपूर्ण होती है
वैज्ञानिकों के अनुसार शंख-ध्वनि से वातावरण का परिष्कार होता है.
इसकी ध्वनि के प्रसार-क्षेत्र तक सभी कीटाणुओं का नाश हो जाता है.
शंख में थोडा सा चूने का पानी भरकर पीने से कैल्शियम की स्थिति अच्छी हो जाती है
शंख बजाने से ह्रदय रोग और फेफड़ों की बीमारियाँ होने की सम्भावना कम हो जाती है
इससे वाणी दोष भी समाप्त होता है
शंख कितने प्रकार का होता है और इनकी अलग अलग महिमा क्या है ?
शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी प्रकारों की विशेषता एवं पूजन-पद्धति भिन्न-भिन्न है
शंख की आकृति के आधार पर सामन्यतः इसके तीन प्रकार माने जाते हैं
ये तीन प्रकार के होते हैं – दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख
भगवान् विष्णु का शंख दक्षिणावर्ती है और लक्ष्मी जी का वामावर्ती
इसके अलावा महालक्ष्मी शंख , मोती शंख और गणेश शंख भी पाया जाता है
सामान्य रूप से कैसे करें शंख का प्रयोग?
सफ़ेद रंग का शंख ले आयें
इसको गंगाजल और दूध से धोकर शुद्ध कर लें
इसके बाद गुलाबी वस्त्र में लपेट कर पूजा के स्थान पर रखें
प्रातः और सायं काल पूजा के बाद तीन तीन बार इसको बजाएं
बजाने के बाद इसको धोकर पुनः वहीँ रक्खें
शंख के प्रयोग में क्या सावधानियां रखें?
शंख को किसी वस्त्र में या किसी आसन पर ही रक्खें
प्रातःकाल और संध्या काल में ही शंख ध्वनि करें , हर समय शंख न बजाएं
शंख को बजने के बाद धोकर ही रखें, अपना शंख किसी और को न दें और न ही दूसरे का शंख प्रयोग करें
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