हिंदू समाज में जिस प्रकार श्री राम नवमी का महत्व है, उसी प्रकार सीता नवमी का भी है. जिस प्रकार अष्टमी तिथि भगवती राधा तथा भगवान श्रीकृष्ण का आविर्भाव से संबंध है, उसी प्रकार नवमी तिथि भगवती सीता तथा भगवान श्री राम के आविर्भाव की तिथि होने से परम आदरणीय है. भगवती राधा का आविर्भाव भाद्रपद शुक्ल अष्टमी और भगवान श्री कृष्ण का आविर्भाव भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को अर्थात दो विभिन्न अष्टमी तिथियों में हुआ. उसी प्रकार भगवती सीता का आविर्भाव वैशाख शुक्ल नवमी और भगवान श्रीराम का आविर्भाव चैत्र शुक्ल नवमी को अर्थात दो विभिन्न नवमी तिथियों में हुआ. सीता नवमी के बारे में विस्तार से बता रहे हैं पंडित अरुण मिश्रा 

देवी का प्राकट्य उत्सव

वैशाख मास की शुक्ल नवमी को जबकि पुष्य नक्षत्र था, मंगल के दिन संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए राजा जनक हल से भूमि जोत रहे थे. उसी समय पृथ्वी से देवी का प्राकट्य हुआ. जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को भी सीता कहते हैं. अतः प्रादुर्भूत भगवती विश्व में सीता के नाम से विख्यात हुई. इसी नवमी की पावन तिथि को भगवती सीता का प्राकट्य उत्सव मनाया जाता है.

क्या करें सीता नवमी पर

अष्टमी तिथि को ही नित्यकर्मों से निर्मित होकर शुद्ध भूमि पर सुंदर मंडप बनाएं, जो तोरण आदि से मंडप के मध्य में सुंदर चौकोर वेदिका पर भगवती सीता एवं भगवान श्री राम की स्थापना करनी चाहिए. पूजन के लिए स्वर्ण, रजत, ताम्र, पीतल, एवं मिट्टी इनमें से यथासंभव किसी एक वस्तु से बनी हुई प्रतिमा की स्थापना की जा सकती है. मूर्ति के अभाव में चित्रपट से भी काम लिया जा सकता है. जो भक्त मानसिक पूजा करते हैं उनकी तो पूजन सामग्री एवं आराध्य सभी भाव में ही होते हैं. भगवती सीता एवं भगवान श्री राम की प्रतिमा के साथ साथ पूजन के लिए राजा जनक, माता सुनैना, पुरोहित शतानंद जी, हल और माता पृथ्वी की भी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए. नवमी के दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर श्री जानकी राम का संकल्प पूर्वक पूजन करना चाहिए. सर्वप्रथम पंचोपचार से श्री गणेश जी और भगवती पार्वती का पूजन करना चाहिए. फिर मंडप के पास ही अष्टदल कमल पर विधिपूर्वक कलश की स्थापना करनी चाहिए. यदि मंडप में प्राण-प्रतिष्ठा हो तो मंडप में स्थापित प्रतिमा या चित्र में प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए. प्रतिमा के कपड़ों का स्पर्श करना चाहिए. भगवती सीता का श्लोक के अनुसार ध्यान करना चाहिए. आज के दिन माता सीता की पूजन करने से सर्वश्रेष्ठ लाभ प्राप्त होता है.

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हर व्यक्ति पांच तत्वों तथा नौ ग्रहों से नियंत्रित होता है. हर तत्व की एक विशेषता होती है और जब यही तत्व प्रधान हो जाता है तो व्यक्ति के अन्दर खास गुण पैदा हो जाता है. अगर केवल ग्रहों का साथ हो तो व्यक्ति परिश्रम से खास बनने की कोशिश करता है. जबकि अगर केवल तत्वों का साथ हो तो व्यक्ति खास स्थितियों में जन्म लेता है परन्तु उसका प्रयोग नहीं कर पाता.

अगर व्यक्ति के अन्दर खास बात हो और साथ में ग्रहों का साथ मिल जाए तो व्यक्ति अपनी विशेषता से महान बन जाता है. बिना किसी खास बात या विशेषता के किसी व्यक्ति का जन्म नहीं होता, इसलिए हर व्यक्ति को अपनी विशेषता पहचानने का प्रयास करना जरूर करना चाहिए.

किस तरह जानें कि आप के अन्दर कौन सी खास बात है. अपनी कुंडली का या हस्तरेखाओं का गंभीर अध्ययन और विश्लेषण कराएं ताकि आपको ये पता लग सके कि आपका जीवन किस दिशा की ओर जा रहा है. अपनी प्रवृत्तियों और आदतों को देखें ताकि आप अपने मन को समझ सकें. आपका पसंदीदा रंग, आपका पसंदीदा खाना भी काफी हद तक ये बता सकता है कि आप अपने किस गुण के कारण खास बन सकते हैं.

जो गुण या ज्ञान आपको बिना किसी विशेष मेहनत के मिला है वो आपको खास बना सकता है. अगर आपका झुकाव किसी विशेष उपलब्धि की ओर है और उसको पाने में मुश्किल आ रही है तो ये चीज भी आपको खास बना सकती है.

कौन सा ग्रह किस प्रकार खास बनाता है या किस प्रकार की ताकत देता है?

– सूर्य – शासन, राजनीति और नेतृत्व का खास गुण देता है.

– चन्द्रमा- कला, चिकित्सा, जनकल्याण और शासन की खासियत देता है.

– मंगल- शौर्य, साहस, तकनीक और नवीन कार्य करने की ताकत देता है.

– बुध- वाणी, प्रखरता, चालाकी और धूर्तता की शक्ति देता है.

– बृहस्पति- ज्ञान, वैराग्य, धर्म और न्याय का खास गुण देता है.

– शुक्र- सौंदर्य, वैभव, मान-सम्मान और चिकित्सा का गुण देता है.

– शनि- अनुशासन, न्याय, व्यवस्था, लोगो की चिंता करने का गुण देता है, कभी-कभी अपराध भी देता है.

– राहु-केतु- अभिनय, संचार, गुप्तचर, नए अनुसंधान और षड़यंत्र की खासियत देता है.

किस तरह अपनी खासियत को (ताकत) निखार कर, सफलता प्राप्त करें?

– अगर ग्रह की नकारात्मकता प्रभावशाली है तो उस ग्रह के स्वभाव को छोड़ने का प्रयास करें.

– अगर ग्रह सकारात्मक रूप से आपको ताकत दे रहा है तो उसके अनुसार आचरण करें.

– शुभ और सकारात्मक कार्य में अगर बाधा आ रही हो तो कार्य को और भी तीव्र गति से करें.

– नित्य प्रातः नवोदित सूर्य को सादा जल अर्पित करें.

– प्रातः अपने माता पिता का चरण स्पर्श करें और अपने सर पर उनके हाथ से आशीर्वाद लें.

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कुंडली में चतुर्थ, सप्तम भाव और चन्द्रमा की स्थिति से आप मन का भाव जान सकते हैं. ये भी जान सकते हैं कि व्यक्ति दूसरों की बुराई करता है अथवा नहीं. अगर चतुर्थ भाव या चन्द्रमा खराब हो और उसको मंगल अथवा शनि का साथ मिल जाए तो दूसरों की बुराई के साथ साथ उनको नुकसान पहुंचाने का भाव भी आ जाता है. हाथ में अंगूठा अगर छोटा हो तो भी बुराई और नुकसान पहुंचाने का भाव आता है.

क्या समस्या होती है अगर हम दूसरों की बुराई लगातार करते हैं?

– इससे धन और परिवार का सुख समाप्त होता है

– इससे कुंडली का बृहस्पति कमजोर होता है, अतः अपयश के योग बन जाते हैं.

– अगर संतान बाधा है तो यह बाधा और भी मजबूत होकर सामने आ जाती है.

– उस व्यक्ति के मन में हमारे लिए भी शत्रु भाव पैदा होने लगता है

क्या होता है अगर हम जानबूझकर किसी को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते हैं?

– जीवन में आकस्मिक रूप से धन कि बड़ी हानि हो सकती है .

– जिस प्रकार से दूसरों को परेशान करना चाहते हैं , उसी प्रकार से खुद परेशान हो सकते हैं

– चलते चलते जीवन एकदम से रुक सकता है , और जीवन में बड़े अपयश मिल सकते हैं.

– आम तौर पर ऐसी दशा में संपत्ति का नाश भी होता हुआ दिखता है .

– संतान अपने हाथों से निकल जाती है , और संतान पक्ष से कष्ट की सम्भावना बन जाती है .

इन बुराइयों से मुख्य रूप से कौन कौन से ग्रह प्रभावित होते हैं?

– इससे राहु और शनि मजबूत होते हैं , जो संघर्ष बढ़ा सकते हैं

– इससे बृहस्पति और शुक्र कमजोर होते हैं

 – और सबसे ज्यादा इससे सूर्य बुरी तरह ख़राब हो जाता है

– ऐसी आदतों से हथेलियों का रंग भी कालेपन की ओर जाने लगता है

अगर हम दूसरों की बुराई करने की खुद की आदत से परेशान हैं तो क्या उपाय करें?

-नित्य प्रातः सूर्य को जल अर्पित करें

– वहीँ पर बैठकर गायत्री मंत्र का जाप करें

– पीले रंग का अधिक से अधिक प्रयोग करें

– प्रयास करें कि तामसिक भोजन , विशेषकर मदिरा का सेवन न करें

– जब भी ऐसा भाव आये , गायत्री मंत्र का जाप करें

अगर कोई दूसरा हमारी बुराई करता हो और हमें नुकसान पहुंचाना चाहता हो?

– घर से हमेशा हनुमान जी को प्रणाम करके निकलें

– जिसके बारे में ऐसी जानकारी हो , उसके संपर्क से बचें

– हर सोमवार को प्रातः शिव जी को सुगंध और जल अर्पित करें

– और हर शनिवार को पीपल के नीचे सरसों के तेल का एक दीपक जलाएँ.

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तंत्र शास्त्र दस महाविद्याओं के वर्णन से सजा है. उनमें से प्रमुख हैं मां बगलामुखी. मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है. विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है.  आइए जानें उनके विशेष मंत्र….

1. मां बगलामुखी विशेष मंत्र :-  

‘ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलयं बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।’

नोट : हल्दी की माला से इस मंत्र का जप करें.

2. अकाल मृत्यु से बचने का मां बगलामुखी मंत्र :-

‘ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ब्रह्मविद्या स्वरूपिणी स्वाहा:’

नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

3. नजर नाशक मंत्र :-

‘ॐ ह्लीं श्रीं ह्लीं पीताम्बरे तंत्र बाधाम नाशय नाशय’

नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

4. सफलता का बगलामुखी मंत्र :-

‘ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं बगामुखी देव्यै ह्लीं साफल्यं देहि देहि स्वाहा:’

 नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

5. भयनाशक बगलामुखी मंत्र :-

‘ ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सर्व भयं हन’

नोट :रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

6. बगलामुखी सुरक्षा कवच मंत्र

‘ॐ हां हां हां ह्लीं बज्र कवचाय हुम’

नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

7. बच्चों की रक्षा का मंत्र:-

‘ॐ हं ह्लीं बगलामुखी देव्यै कुमारं रक्ष रक्ष’

नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

8. शत्रुनाशक मंत्र:-

‘ॐ बगलामुखी देव्यै ह्लीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु’

नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

– इनकी पूजा तंत्र की पूजा है अतः बिना किसी गुरु के निर्देशन के नही करनी चाहिए

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देवी के दस महाविद्या स्वरुप में से एक स्वरुप माँ बगलामुखी का है. इन्हें पीताम्बरा और ब्रह्मास्त्र भी कहा जाता है. ये स्वयं पीली आभा से युक्त हैं और इनकी पूजा में पीले रंग का विशेष प्रयोग होता है. इनको स्तम्भन शक्ति की देवी माना जाता है. सौराष्ट्र में प्रकट हुये महातूफ़ान को शान्त करने के लिये भगवान विष्णु ने तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरुप माँ बगलामुखी का प्राकट्य हुआ था. शत्रु और विरोधियों को शांत करने के लिये तथा मुकदमे में विजय के लिये इनकी उपासना अचूक है. इस बार माँ बगलामुखी का जन्मोत्सव 19 अप्रैल को मनाया जाएगा.

माँ बगलामुखी के पूजा के नियम और सावधानियां क्या हैं?

– इनकी पूजा तंत्र की पूजा है अतः बिना किसी गुरु के निर्देशन के नही करनी चाहिए

– इनकी पूजा कभी भी किसी के नाश के लिये न करें

– इनकी पूजा में व्यक्ति को पीले आसन, पीले वस्त्र, पीले फल और पीले नैवैद्य का प्रयोग करना चाहिए

– इनके मन्त्र जाप के लिये हल्दी की माला का प्रयोग करें

– पूजा का उपयुक्त समय है सँध्याकाल या मध्यरात्रि

– शत्रु और विरोधियों को शांत करने के लिए, बगलामुखी जन्मोत्सव पर इनकी पूजा जरूर करें.

 

शत्रु और विरोधियों को शांत करने के लिये कैसे करें मां बगलामुखी की उपासना?

– चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं

– इस पर माँ बगलामुखी के चित्र या प्रतिमा की स्थापना करें

– उनके सामने अखंड दीपक जलायें , उन्हे पीले पुष्प और पीला नैवेद्य अर्पित करें

– सबसे पहले इनके भैरव, मृत्युंजय की उपासना करें

– फिर बगला कवच का पाठ करें

– इसके बाद अपने संकल्प के साथ इनके मन्त्र का जाप करें

– मंत्र होगा – “ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय, जिह्ववां कीलय, बुद्धि विनाशय, ह्रीं ॐ स्वाहा”

– कम से कम छत्तीस हज़ार या एक लाख मंत्रो का जाप करें

– अनुष्ठान के बाद दशांश हवन भी करें

दरिद्रता नाश के लिये माँ बगलामुखी की उपासना कैसे करें?

– इसके लिए नित्य प्रातः माँ बगलामुखी की उपासना करें

– हल्दी की माला से दरिद्रता नाश के मन्त्र क जाप करें

– मंत्र होगा – “श्रीं ह्रीं ऐं भगवती बगले मे श्रियं देहि देहि स्वाहा”

– पूर्ण सात्विकता बनाये रखें.

माँ बगलामुखी की सदैव कृपा पाने के लिए क्या करें?

– बगलामुखी जयंती के दिन माँ बगलामुखी को दो गाँठ हल्दी की अर्पित करें

– माँ से शत्रु और विरोधियों के शांत हो जाने की प्रार्थना करें

– एक हल्दी की गाँठ अपने पास रख लें

– दूसरी गाँठ को जल प्रवाहित कर दें

– आप हर तरह की शत्रु बाधा से सुरक्षित रहेंग.

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शादी के रिश्ते की डोर बहुत नाजुक होती है. इसे संभालने के लिए बड़े जतन करने पड़ते हैं.  तमाम कोशिशों के बावजूद कुछ लोगों की शादीशुदा जिंदगी में परेशानियां आ ही जाती हैं. आइए जानते हैं राशि के हिसाब से महिलाओं के वैवाहिक जीवन में कौन सी समस्याएं आती हैं….

मेष राशि- इस राशि की महिलाओं के वैवाहिक जीवन में मुख्य रूप से ससुराल पक्ष के रिश्ते समस्या देते हैं.

उसमे भी ननदों के साथ के रिश्ते समस्या का कारण बनते हैं.

पति की नशे की प्रवृत्ति भी समस्या होती है.

इस समस्या को समाप्त करने के लिए रोज प्रातः शिव जी को जल अर्पित करें.

वृष राशि- वृष राशी की महिलाओं के जीवन में मुख्य रूप से उनकी मानसिक संवेदनशीलता समस्या देती है.

उनके वैवाहिक जीवन में उनके मायके पक्ष के लोग समस्या देते हैं.

इन्हे अपने पति का समय न मिल पाना भी एक बड़ी समस्या है

इस समस्या के निवारण के लिए नित्य प्रातः हनुमान जी को लाल फूल अर्पित करें.

मिथुन राशि- मिथुन राशी की महिलाओं के जीवन में ससुराल पक्ष से समस्या होती है,

इनका तालमेल अपने देवर और देवरानी से नहीं बनता

इसी कारण से उनके वैवाहिक जीवन में समस्या होती रहती है.

नित्य प्रातः सूर्य को हल्दी मिलाकर जल चढ़ाइए , समस्या गायब हो जायेगी.

कर्क राशि – ये बहुत संवेदनशील होती हैं अतः इनको अलग अलग समय अलग अलग रिश्ते परेशान करते हैं.

अक्सर उनके वैवाहिक जीवन में बाहर की महिलाएं या कभी कभी उनकी अपनी भाभी समस्या का कारण बनती है.

इस समस्या को दूर करने के लिए नित्य सायंकाल तुलसी के नीचे घी का दीपक जलाना चाहिए.

सिंह राशि- सिंह राशी की महिलाओं के जीवन में उनकी सास अक्सर समस्या का कारण बनती है.

बहु और सास के बीच प्रभुत्व को लेकर विवाद होते हैं और ये वैवाहिक जीवन को ख़राब कर देते हैं.

इससे बचने के लिए इनको शनिवार को पीपल के वृक्ष में जल डालना चाहिए.

कन्या राशि- कन्या राशी की महिलाएं अपने पति के मित्रों से काफी परेशान होती हैं,

इनके कारण वैवाहिक जीवन में उनको बाधा महसूस होती है.

इस बाधा से बचने के लिए इनको पीले वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए ,

साथ ही बृहस्पतिवार को पीली चीज़ों का सेवन नहीं करना चाहिए.

तुला राशि- तुला राशी की महिलाओं के जीवन में उनका अपना मायका पक्ष समस्या देता है.

इनके अपने माता पिता वैवाहिक जीवन में समस्या का कारण बनते हैं.

इससे बचने के लिए इनको मंगलवार को हनुमान जी का दर्शन करना चाहिए.

वृश्चिक राशि- इनके जीवन में उनके जेठ-जिठानी या देवर देवरानी अकसर बाधा पैदा करते हैं.

इनके साथ तालमेल ख़राब होता है और पारिवारिक विभाजन की नौबत आ जाती है.

इससे बचने के लिए इनको हर शुक्रवार को दही का दान करना चाहिए

साथ ही काले रंग के वस्त्रों से परहेज करना चाहिए.

धनु राशि-  इनके जीवन में दो चीजें वैवाहिक जीवन को ख़राब करती हैं – एक उनका क्रोध और दूसरा उनकी ननद.

दोनों कारण मिलकर मामला शुरू से ही काफी ख़राब कर देते हैं.

ऐसी दशा में इस राशी की महिलाओं को सूर्य को जल देना चाहिए

साथ ही हरी वस्तुओं का दान करना चाहिए.

मकर राशि- मकर राशी की महिलाओं के लिए आम तौर पर रिश्ते समस्या नहीं देते ,

उनका बहुत ज्यादा भौतिकवादी होना और करियर की तरफ जरूरत से ज्यादा झुकाव मुश्किल देता है.

थोड़ा सा रिश्तों पर ध्यान दें और अपने बेहतरीन दिमाग का प्रयोग करें

इनको भगवान शिव को नित्य प्रातः जल अर्पित करना चाहिए.

कुम्भ राशि- इनके लिए इनके पति के दोस्त और पति के भाई समस्या का कारण बनते हैं.

इनके साथ पति का जरूरत से ज्यादा समय देना समस्या का कारण बनता है.

इस समस्या से निजात के लिए इनको हर रविवार को मीठी वस्तुओं का दान करना चाहिए.

मीन राशि- मीन राशी की महिलाएं आम तौर पर वैवाहिक जीवन में गंभीर नहीं होती

साथ ही उनका तालमेल अपनी सास से बिलकुल नहीं होता अतः रोज रोज घर में क्लेश होता है.

इस समस्या से निजात पाने के लिए इनको नित्य प्रातः माँ दुर्गा को सिन्दूर अर्पित करना चाहिए.

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गीता में चौथे अध्याय के एक श्लोक में भगवान कृष्ण ने कहा है :
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

इसका मतलब है, हे भारत, जब-जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म बढ़ने लगता है, तब-तब मैं स्वयं की रचना करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं. मानव की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं अलग-अलग युगों (कालों) में अवतरित होता हूं.

तो आइए जानें श्रीहरि के दशावतारों के बारे में :

1. मत्स्य अवतार :
मत्स्य अवतार भगवान विष्णु का पहला अवतार है. इस अवतार में विष्णु जी मछली बनकर प्रकट हुए थे. मान्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर समुद्र की गहराई में छुपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में आकर वेदों को पाया और उन्हें फिर स्थापित किया.

2. वराह अवतार :
वराह अवतार हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से तीसरा अवतार है. इस अवतार में भगवान ने सुअर का रूप धारण करके हिरण्याक्ष राक्षस का वध किया था.

3. कच्छप अवतार :
कूर्म अवतार को ‘कच्छप अवतार’ भी कहते हैं. इसमें भगवान विष्णु कछुआ बनकर प्रकट हुए थे. कच्छप अवतार में श्री हरि ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन में मंदर पर्वत को अपने कवच पर रखकर संभाला था. मंथन में भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि सर्प की मदद से देवताओं और राक्षसों ने चौदह रत्न पाए थे.

4. नृसिंह भगवान :
ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से चौथा अवतार नृसिंह हैं. इस अवतार में लक्ष्मीपति नर-सिंह मतलब आधे शेर और आधे मनुष्य बनकर प्रकट हुए थे. इसमें भगवान का चेहरा शेर का था और शरीर इंसान का था. नृसिंह अवतार में उन्होंने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए उसके पिता राक्षस हिरणाकश्यप को मारा था.

5. वामन अवतार :
भगवान विष्णु पांचवां अवतार हैं वामन. इसमें भगवान ब्राम्हण बालक के रूप में धरती पर आए थे और प्रहलाद के पौत्र राजा बलि से दान में तीन पद धरती मांगी थी. तीन कदम में वामन ने अपने पैर से तीनों लोक नाप कर राजा बलि का घमंड तोड़ा था.

6. परशुराम :
विष्णु के अवतार परशुराम राजा प्रसेनजित की बेटी रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र थे. दशावतारों में से वह छठवां अवतार थे. जमदग्नि के पुत्र होने की वजह से इन्हें ‘जामदग्न्य’ भी कहते हैं. वह शिव के परम भक्त थे. भगवान शंकर ने इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर परशु शस्त्र दिया था. इनका नाम राम था और परशु लेने के कारण वह परशुराम कहलाते थे. कहा जाता है इन्होंने क्षत्रियों का कई बार विनाश किया था. क्षत्रियों के अहंकारी विध्वंश से संसार को बचाने के लिए इनका जन्म हुआ था.

7. श्रीराम :
विष्णु के दस अवतारों में से एक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम हैं. महर्षि वाल्मिकि ने राम की कथा संस्कृत महाकाव्य रामायण में लिखी थी. तुलसीदास ने भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस की रचना की थी. राम, अयोध्या के राजा दशरथ और उनकी पहली रानी कौशल्या के पुत्र थे.

8. श्री कृष्ण :
यशोदा नंदन श्री कृष्ण भी विष्णु के अवतार थे. भागवत ग्रंथ में भगवान कृष्ण की लीलाओं की कहानियां है. इनके गोपाल, गोविंद, देवकी नंदन, वासुदेव, मोहन, माखन चोर, मुरारी जैसे अनेकों नाम हैं. यह मथुरा में देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में प्रकट हुए थे. श्री कृष्ण की महाभारत के युद्ध में बहुत बड़ी भूमिका थी. वह इस युद्ध में अर्जुन के सारथी थे. उनकी बहन सुभद्रा अर्जुन की पत्नी थीं. उन्होंने युद्ध से पहले अर्जुन को गीता उपदेश दिया था.

9. भगवान बुद्ध :
भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक बुद्ध भी हैं. इनको गौतम बुद्ध, महात्मा बुद्ध भी कहा जाता है. वह बौद्ध धर्म के संस्थापक माने जाते हैं. बौद्ध धर्म संसार के चार बड़े धर्मों में से एक है. इनका जन्म क्षत्रि‍य कुल के शाक्य नरेश शुद्धोधन के पुत्र के रूप में हुआ था. इनका नाम सिद्धार्थ रखा गया था. गौतम बुद्ध अपनी शादी के बाद बच्चे राहुल और पत्नी यशोधरा को छोड़कर संसार को मोह-माया और दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग पर निकल गए थे.

10. कल्कि अवतार :
कल्कि अवतार भगवान विष्णु का आखरी अवतार माना जाता है. कल्कि पुराण के अनुसार श्री हरि का ‘कल्कि’ अवतार कलियुग के अंत में होगा. उसके बाद धरती से सभी पापों और बुरे कर्मों का विनाश होगा.

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भगवान परशुराम जी का जन्म अक्षय तृतीया पर हुआ था इसलिए अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है. परशुराम जी की गणना दशावतारों में होती है. परशुराम जयंती पर विशेष जानकारी दे रहे हैं  पंडित अरुण मिश्रा 

भगवान परशुराम स्वयं भगवान विष्णु के अंशावतार हैं. वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था . अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है. इस तिथि को प्रदोष व्यापिनी रूप में ग्रहण करना चाहिए क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल ही है. इस बार 18 अप्रैल 2018 को परशुराम जयंती मनाई जाएगी.

भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नि के पुत्र थे. पुत्रोत्पत्ति के निमित्त इनकी माता तथा विश्वामित्र जी की माता को प्रसाद मिला था जो देव शास्त्र द्वारा आपस में बदल गया था . इससे रेणुका का पुत्र परशुराम जी ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे जबकि विश्वामित्र जी क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होकर भी ब्रह्मर्षि हो गए . जिस समय इनका अवतार हुआ था उस समय पृथ्वी पर क्षत्रिय राजाओं का बाहुल्य हो गया था . उन्ही में से एक  राजा ने उनके पिता जमदग्नि का वध कर दिया था, जिससे क्रुद्ध होकर इन्होंने 21 बार  दुष्टों राजाओं से पृथ्वी को मुक्त किया. भगवान शिव के दिए हुए परशु अर्थात फरसे को धारण करने के कारण इनका नाम परशुराम पड़ा .

आज के दिन व्रती नित्य- कर्म से निवृत्त हो प्रातः स्नान करके सूर्यास्त तक मौन रहे और स्नान करके भगवान परशुराम की मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें तथा रात्रि जागरण कर इस व्रत में श्री राम-मंत्र का जप करना  सर्वश्रेष्ठ होता है . ऐसा करने से पुण्य का भागी बना जा सकता है.

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सफलता के लिए समय पर सही निर्णय लेना जरूरी है. सफलता और असफलता में निर्णय लेने की कुशलता का बड़ा महत्व है. ऐसे में आज गुरूजी विनोद भारद्वाज बता रहे हैं क्यों जरूरी है सही निर्णय लेना. साथ ही वे बताएंगे कौन से हैं वे लोग जो समय पर सही निर्णय नहीं ले पाते.

ये लोग सही निर्णय नहीं ले पाते-

 

    • जिन लोगों का मुख्य ग्रह कमजोर होता है वो सही निर्णय नहीं ले पाते हैं.
    • जिन लोगों का चंद्रमा खराब होता है वो सही निर्णय नहीं ले पाते हैं.
    • ऐसे लोगों के निर्णय लेने की क्षमता में आत्मबल की कमी होती है.
    • चंद्रमा खराब होने पर दूसरों की सलाह झूठी लगती है.
    • चंद्रमा खराब होने पर व्यक्ति बड़ा निर्णय लेने में तनाव में आ जाता है.
    • चंद्रमा खराब होने पर व्यक्ति जीवनसाथी तक की सलाह पर शक कर सकता है.
    • चंद्रमा खराब होने पर व्यक्ति बिना जरूरत के निर्णय बदलते रहता है.

 

अच्छे निर्णय लेने के उपाय –

 

    • जिनकी बृहस्पति या चंद्रमा मजबूत हैं उनसे सलाह लेकर निर्णय करने से लाभ होता है.
    • ध्यान करने से निर्णय की क्षमता विकसित होती है.
    • जब भी दुविधा में हो तो उत्तर-पूर्व के मध्य की ओर मुंह करके ऊं का जप करें.
    • ईश्वर को आराध्य मानकर आत्मबल से निर्णय लें.
    • कोई बड़ा निर्णय लेना हो तो गुरु के शरण में जाएं.
    • निर्णय लेने में दिक्कत आती है तो मौन रखा करें.
    • दिन में निर्णय लेने से से पहले गहरी सांस लें, बाएं नथुने से सांस भरते समय लिया गया निर्णय सही होता है.
    • रात में निर्णय लेने से पहले गहरी सांस लें, दाएं नथुने से सांस भरते समय लिया गया निर्णय सही होता है.
    • निर्णय लेते समय मन को शांत रखें.

 

गलत निर्णय से बचने का उपाय –

 

    • क्रोध और धैर्यहीनता में निर्णय ना लें.
    • मेष, मिथुन, कन्या, मीन लग्न में बड़ा निर्णय ना लें.
    • बड़ा निर्णय वृषभ, सिंह और वृश्चिक लग्न में लें.

 

गलत निर्णय की रेखाएं-

 

    • अगर हथेली की अपेक्षा उंगलियां छोटी हो तो आपका निर्णय सही नहीं होगा.
    • अगर उंगलियां हथेलियों की अपेक्षा ज्यादा बड़ी हो तो निर्णय सही नहीं होगा.
    • अगर अंगूठा छोटा हो तो निर्णय बहुत गलत सिद्ध होता है.
    • अगर अंगूठा आगे की ओर झुका रहता है तो निर्णय गलत होते हैं.
    • अगर आपका उंगलियां पतली हो और आगे की तरफ झुकी हो तो व्यक्ति निर्णय लेने में सक्षम नहीं होता.
    • अगर बृहस्पति की उंगली से सूर्य की उंगली छोटी हो तो निर्णय लेने का साहस नहीं होता है. ऐसे लोगों को नियमित गायत्री का यज्ञ करना चाहिए. ऐं क्लीं नमस चंडिकाये का जप करें. ध्यान करें.

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जिस ग्रह की दशा के प्रभाव में हम होते हैं, उसकी स्थिति के अनुसार शुभाशुभ फल हमें मिलता है. जब भी कोई ग्रह अपना शुभ या अशुभ फल प्रबल रूप में देने वाला होता है, तो वह कुछ संकेत पहले से ही देने लगता है. इनके उपाय करके बढ़ी समस्याओं से बचा जा सकता है. आइए जानें…

ज्योतिष शास्त्र में मंगल को सेनापति माना गया है. मंगल की प्रधानता वाले जातक साहसी, स्वस्थ और आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं. ये अपने सिद्धांतों एवं निर्णयों पर अडिग रहते हैं.

मेष, मंगल, वृश्चिक राशि के स्वामी होते हैं. मंगल के अशुभ होने के पूर्व संकेत भूमि का कोई भाग या संपत्ति का कोई भाग टूट-फूट जाता है. घर के किसी कोने में या स्थान में आग लग जाती है. यह छोटे स्तर पर ही होती है. किसी लाल रंग की वस्तु या अन्य किसी प्रकार से मंगल के कारकत्व वाली वस्तु खो जाती है या नष्ट हो जाती है.

घर के किसी भाग का या ईंट का टूट जाना.

हवन की अग्नि का अचानक बंद हो जाना.

अग्नि जलाने के अनेक प्रयास करने पर भी अग्नि का प्रज्वलित न होना या अचानक

जलती हुई अग्नि का बंद हो जाना.

वातजन्य विकार अकारण ही शरीर में प्रकट होने लगना.

किसी प्रकार से छोटी-मोटी दुर्घटना हो सकती है.

उपाय-

*  मंगल के देवता हनुमान जी हैं, अंत: मंदिर में लड्डू या बूंदी का प्रसाद वितरण करें. हनुमान चालीसा. हनुमान मंदिर में गुड़-चने का भोग लगाएं.

* यदि संतान को कष्ट या नुक्सान हो रहा हो तो नीम का पेड़ लगाएं, रात्रि सिरहाने जल से भरा पात्र रखें एवं सुबह पेड़ में डाल दें.

* पितरों का आशीर्वाद लें. बड़े भाई एवं भाभी की सेवा करें, फायदा होगा.

 * लाल कनेर के फूल, रक्त चंदन आदि डाल कर स्नान करें.

* मूंगा, मसूर की दाल, ताम्र, स्वर्ण, गुड़, घी, जायफल आदि दान करें.

एक समय बिना नमक का भोजन करें.

मीठी रोटी (गुड़ व गेंहू की), तांबे के बर्तन, लाल चंदन, केसर, लाल गाय आदि का दान करें.

* मंगल मंत्र ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाया नम:.’ मंत्र के 40000 जप करें.

उपरोक्त मंत्र के अलावा मंगल के निम्र मंत्रों का जप भी कर सकते हैं-

 ॐ अंगारकाय नम:.’

अन्य उपाय : हमेशा लाल रुमाल रखें, बाएं हाथ में चांदी की अंगूठी धारण करें,

कन्याओं की पूजा करें और स्वर्ण न पहनें, मीठी तंदूरी रोटियां कुत्ते को खिलाएं,

ध्यान रखें, घर में दूध उबल कर बाहर न गिरे.

ये समस्त जानकारियां शास्त्र के अनुसार है|

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भगवान शिव की साकार रूप में पूजा लिंग स्वरुप में सबसे ज्यादा होती है. जहाँ इस लिंग रूप में भगवान ज्योति के रूप में विद्यमान रहते हैं उसको ज्योतिर्लिंग कहते हैं. कुल मिलाकर भगवान शिव के द्वादश (बारह) ज्योतिर्लिंग हैं- सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, विश्वनाथ, त्रयम्बकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर, घुश्मेश्वर. भगवान के अन्य लिंगों की पूजा की तुलना में ज्योतिर्लिंगों की पूजा करना अधिक उत्तम होता है. अगर नित्य प्रातः केवल इन शिवलिंगों के नाम का स्मरण किया जाय तो माना जाता है कि इससे सात जन्मों के पाप तक धुल जाते हैं. अगर आप इन शिवलिंगों के दर्शन नहीं कर पाते तो इनकी प्रतिकृति ( चित्र) लगाकर पूजा करने से भी आपको अपार लाभ हो सकता है.

घर में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के चित्र लगाने के नियम क्या हैं?

– चित्र को पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर लगायें

– एक साथ सभी ज्योतिलिंगों के चित्र न लगायें

– अपनी राशी के अनुसार अगर आप ज्योतिर्लिंग का चित्र लगाते हैं तो ज्यादा बेहतर होगा

– आप ये चित्र सावन महीने में किसी भी दिन अन्यथा सोमवार, पूर्णिमा,या शिवरात्री को लगा सकते हैं

– जहाँ पर इस ज्योतिर्लिंग का चित्र लगायें बेहतर होगा कि वहां पर कोई और चित्र या देवी देवता की स्थापना न करें

किस प्रकार ज्योतिर्लिंगों के समक्ष पूजा उपासना की जायेगी?

– ज्योतिर्लिंग के समक्ष एक बड़ा पात्र रख लें

– सबसे पहले भगवान शिव का ध्यान करके उसी पात्र में बेलपत्र,फल,धूप आदि अर्पित करें

– फिर भगवान शिव का नाम जपते हुए उसी पात्र में दोनों हाथों से जल डालें

– इसके बाद भगवान शिव के किसी मंत्र की कम से कम ३ या अधिक से अधिक ११ माला का जाप करें

– जप के पश्चात भगवान शिव का ध्यान करें

– सबसे अंत में द्वादश ज्योतिर्लिंगों का नाम लें और तब क्षमा प्रार्थना करें

विशेष प्रयोजनों के लिए किस ज्योतिर्लिंग के चित्र की स्थापना करें?

– बीमारी से मुक्ति पाने के लिए – श्री वैद्यनाथ

– शाप से मुक्ति पाने के लिए – श्री सोमनाथ

– आयु रक्षा और स्वास्थ्य के लिए – श्री महाकाल

– मुकदमों,प्रतियोगिता और शत्रु विजय के लिए – श्री रामेश्वरम

– हर प्रकार की ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति के लिए – श्री विश्वनाथ

राशि अनुसार किस ज्योतिर्लिंग का चित्र लगाना और पूजा करना उत्तम होगा?

मेष- श्री रामेश्वरम का चित्र

वृष- श्री सोमनाथ का चित्र

मिथुन- श्री त्रयम्बकेश्वर का चित्र

कर्क- श्री महाकाल का चित्र

सिंह- श्री मल्लिकार्जुन का चित्र

कन्या- श्री ओंकारेश्वर का चित्र

तुला- श्री नागेश्वर का चित्र

वृश्चिक- श्री केदारनाथ का चित्र

धनु- श्री घुश्मेश्वर का चित्र

मकर- श्री भीमाशंकर का चित्र

कुम्भ- श्री विश्वनाथ का चित्र

मीन- श्री वैद्यनाथ का चित्र


वेद के अध्ययन पर विचार करें, तो राहु का अधिदेवता काल और प्रति अधिदेवता सर्प है, जबकि केतु का अधिदेवता चित्रगुप्त एवं प्रति के अधिदेवता ब्रह्माजी है. राहु का दायां भाग काल एवं बायां भाग सर्प है. राहु एवं केतु सर्प ही है और सर्प के मुंह में जहर ही होता है.

जब प्रसन्न हो राहु-केतु: इससे यह सिद्ध होता है कि राहु-केतु जिस पर प्रसन्न है, उसको संसार के सारे सुख सहज में दिला देते है एवं इसके विपरीत राहु-केतु (सर्प) क्रोधित हो जाए,तो मृत्यु या मृत्यु समान कष्ट देते हैं. सृष्टि का विधान रहा है, जिसने भी जन्म लिया है, वह मृत्यु को प्राप्त होगा. मनुष्य भी उसी सृष्टि की रचना में है, अत: मृत्यु तो अवश्यभांवी है. उसे कोई नहीं टाल सकता है. परंतु मृत्यु तुल्य कष्ट ज्यादा दुखकारी है.

क्या कहते हैं शास्त्र:– शास्त्रानुसार जो जातक अपने माता-पिता एवं पितरो की सच्चे मनसे सेवा करते है, उन्हें कालसर्प योग अनुकूल प्रभाव देता है. जो उन्हें दुख देता है, कालसर्प योग उन्हें कष्ट अवश्य देता है. कालसर्प के कष्ट को दूर करने के लिए कालसर्प की शांति अवश्य करना चाहिए एवं शिव आराधना करना चाहिए.

प्रेम विवाह में सफल होने के लिए: यदि आपको प्रेम विवाह में अडचने आ रही हैं तो : शुक्ल पक्ष के गुरूवार से शुरू करके विष्णु और लक्ष्मी मां की मूर्ति या फोटो के आगे “ऊं लक्ष्मी नारायणाय नमः” मंत्र का रोज़ तीन माला जाप स्फटिक माला पर करें. इसे शुक्ल पक्ष के गुरूवार से ही शुरू करें. तीन महीने तक हर गुरूवार को मंदिर में प्रसाद चढाएं और विवाह की सफलता के लिए प्रार्थना करें.

परेशान करना बंद कर देंगे राहु, अगर आप करेंगे शिव की आराधना…

राहु ग्रह भगवान शिवशंकर के परम आराधक है. अत: जब राहु ग्रह परेशान कर रहा हो तो जातक को शिवजी की आराधना करनी चाहिए. निम्न 9 उपायों को करने से राहु ग्रह की शांति बहुत ही कम समय में हो जाती है. आइए जानें…

* अगर आपके जन्मांक में राहु, चंद्र, सूर्य को दूषित कर रहा है तो जातक को भगवान शिवशंकर की सच्चे मन से आराधना करना चाहिए

* सोमवार को व्रत करने से भी भगवान शिवशंकर प्रसन्न होते हैं. अतः सोमवार को शिव आराधना पूजन व्रत करने के पश्चात, शाम को भगवान शिवशंकर को दीपक लगाने के पश्चात् सफेद भोजन खीर, मावे की मिठाई, दूध से बने पदार्थ ग्रहण करना चाहिए.

* भगवान भोले शंकर भक्त की पवित्र श्रद्धा पूर्ण आराधना से तत्काल प्रसन्न होने वाले देव है.

* अतः बगैर ढोंग दिखावे के निर्मल हृदय से सच्ची आस्था के साथ भगवान शिव का स्मरण करना चाहिए.

* राहु महादशा में सूर्य, चंद्र तथा मंगल का अंतर काफी कष्टकारी होता है, अतः समयावधि में नित्य प्रतिदिन भगवान शिव को बिल्व पत्र चढ़ाकर दुग्धाभिषेक करना चाहिए.

* जातक को शिव साहित्य जैसे- शिवपुराण आदि का पाठ करना चाहिए.

* ॐ नमः शिवाय मंत्र का नाम जाप लगातार करते रहना चाहिए.

* राहु की महादशा अथवा अंतर प्रत्यंतर काफी कष्टकारी हों तब भगवान शिव का अभिषेक करवाना चाहिए.

* भगवान शिव की प्रभु श्रीराम के प्रति परम आस्था है, अतः राम नाम का स्मरण भी राहु के संकटों से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है.