हमारे शास्त्रों में कई ऐसे रीती-रिवाज है जो हमें करते हैं, लेकिन इसके पीछे क्या कारण हैं ये हम नहीं जानते। इसलिए आज हम ऐसे कुछ रिवाजों के बारे में जानेंगे और ये जानेंगे की इसके करने के क्या कारण है:
१) आम के पत्ते का उपयोग
तोरण, बांस के खंबे इन सब चीजों में हिन्दू शास्त्र के अनुसार आम के पत्ते लगाए जाते हैं। आम के सूखे लकड़ियों ( जिसे हम शास्त्र अनुसार समिधा कहा जाता है ) को हम हवन के रूप में करते हैं। हम आम के पत्तों को पूजा के दौरान कलश के ऊपर रखते है और इसी के पत्तों के द्वारा हम जल को हथेली पे लेने के लिए उपयोग करते हैं। इसके पीछे कारण ये है की आम की लकड़ी को घी, और हवन सामग्री के साथ उपयोग करने से हमारे घर और इसके आसपास का वातावरण शुद्ध होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। शुभ कार्य के दौरान घर के प्रवेश द्वार पे आम के पत्तों को लगाने से घर के अंदर आने वाले सभी लोगों के साथ सकारात्मकता भी साथ आती है और घर में माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इसे लगाने से शुभ कार्य बिना किसी विघ्न के पुरे होते हैं।
२) स्वास्तिक का उपयोग
हमने ध्यान से देखा होगा की जब भी कोई पूजा या शुभ कार्य हो रहे हो तो हमेशा पूजा के स्थान पे या शुभ कार्य वाले स्थान पे स्वास्तिक का चिन्ह को बनाया जाता है। जिसे हम किसी भी दिशा से देखे तो ये सभी दिशा से एक देखता है। इसके पीछे मान्यता है की ये चिन्ह घर में शुभ और लाभ दोनों को बढ़ाने का काम करता है। ये घर में या उसके चारों और उपस्थित सभी नकारात्मक और ख़राब शक्तियों, उनके दोषों को काम करने में सहायक होता है।शास्त्रों के अनुसार स्वास्तिक को श्री हरी के आसान व् लक्ष्मी का स्वरुप के रूप में माना गया है। कुछ जगहों पे इन्हें गणेश के रूप में भी माना जाता है। पूजा में उपयोग किये जाने वाले कुमकुम या सिंदूर से बने स्वास्तिक सभी ग्रह के दोषों को दूर करके धन कारक योग बनाता है।
३) सर्वप्रथम श्री गणेश की पूजा
शास्त्रों के अनुसार हम हमेशा किसी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश वंदना करते हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा समाहित है। एक समय सभी देवों के बीच एक प्रश्न उठा की आखिर सबसे पहले किनकी पूजा की जाये, क्योंकि सभी देवी-देवतों के पास अपार सहस और शक्तियां थी और सभी इस ब्रह्मांड को चलने में सामान रूप से योगदान कर रहे थे। इसलिए नारद मुनि त्रिदेवों और त्रिदेवियों के सामने ने एक उपाय रखा की एक प्रतियोगिता किया जाय। इस प्रतियोगिता में जो सबसे पहले पुरे पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले लौटेगा वही सर्वप्रथम पूज्य होगा। फिर सभी देव अपने वाहन पे सवार होक प्रतियोगिता के लिए चल पड़े। लेकिन श्री गणेश ने अपने सवारी मूसक पे बैठकर माता-पिता के चारों और घूमकर पुरे सात चक्कर लगाया। जब कार्तिके परिक्रमा करके वापस लौटे तो उन्होंने कहा की गणेश को क्यों प्रथम पूज्य बनाया गया।
शिव जी ने गणेश को देखते हुए कहा की उसने अपने माता-पिता की परिक्रमा किया और पुरे संसार में पुरे संसार में माता-पिता से बड़ा कोई भी नहीं। माता-पिता ब्रह्माण्ड के बराबर होते हैं। तब से श्री गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है।
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