क्यों पानी पीते हैं कापालिक इंसानों की खोपड़ी में, जाने इनसे जुड़ी कुछ रहस्य

कापालिक जिन्हें शास्त्रों में एक तांत्रिक शैव संप्रदाय के रूप में माना जाता है। कापालिकों का जीवन बहुत ही अलग तरह का होता है। ये लोग मानव की खोपड़ीयों(जिन्हें कपाल कहा जाता है) से अपनी साधना करते है, इस कारण इन्हें शास्त्रों अनुसार कापालिक कहा जाता है। आज हम इन्हीं से सम्बंधित चीजों के बारे में जानेंगे।

 

१) शास्त्रों के अनुसार कापालिकों ने भैरव और कौल तंत्र की रचना किया। कहा जाता है की ये संप्रदाय पाशुपत या शैव समूह के अंग हैं जिसमें वामाचार अपने चरम रूप में उपस्थित होता है।

 

२) कापालिक अपना भोजन और पानी दोनों ही खोपड़ी में ही करते है। ये लोग अपनी साधनाओं में भैरव, चांडाली, माँ काली, शिव जैसे देवी और देवताओं की साधना को करते हैं। पूर्व काल में कापालिकों के पास इतनी शक्तियां थी की मुख्य कापालिकअपने मंत्र से अपने साथी कापालिकों की काम शक्ति को काम कर देते थे और अपने ही तरीके से बढ़ा देते थे। जिससे योग्य मापदंड में साधना पूरी होती थी। लेकिन आज यह अद्भुत चीजें लुप्त होते हुए एक गुप्त रूप से सुरक्षित है। जो की तांत्रिक मठों में किया जाता है।

 

३) पूर्व समय में कहा जाता है की कापालिक अपने साधना को विलास तथा वैभव के रूप में मानते हुए इसमे शामिल हुए। और धीरे-धीरे इसे भोग मार्ग को एक विकृत रूप बना दिया गया। चक्र साधना को भोग विलास तथा काम पिपासा शांत करने का साधन बनाया गया और ये घृणा भाव से देखा जाने लगा।

सही अर्थ में कापालिक वो थे, जिन्होंने अलग-अलग होकर अपना साधना शुरू किया। लेकिन आदि गुरु शंकराचार्य ने इस संप्रदाय का विरोद किया जिससे इस संप्रदाय का एक बड़ा हिस्सा नेपाल के सीमावर्ती इलाके और तिब्बत में चला गया। ये समूह अभी भी तिब्बत में बोद्ध कापालिक साधना के रूप में विख्यात है।

 
४) इतिहासकारों के अनुसार ये कहा जाता है की कापालिकों की साधनायें बहुत ही शक्तिशाली और बहुत महत्वपूर्ण रही हैं। इनके चक्र में मुख्य साधक को भैरव तथा साधिका को त्रिपुर सुंदरी के नाम से जाना जाता है। और काम शक्ति के विभिन्न साधना से ये शक्तिशाली हो जाते हैं। अपने मन की इच्छा के द्वारा ही ये अपने शारीरिक चीजों पे नियंत्रण रख सकते हैं और किसी भी प्रकार के निर्माण और विनाश  करने की असीम शक्ति प्राप्त होती है इस मार्ग पे। इस मार्ग में कापालिक अपने भैरवी साधिका को अपने पत्नी के रूप में स्वीकार भी कर सकते हैं। इनके मठ जीर्णशीर्ण अवस्था में उत्तरी पूर्व राज्यों में हम देख सकते हैं।

 

 

ये समस्त जानकारियां शास्त्रों के अनुसार है|

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