मंदिर एक ऐसा स्थान जहाँ कभी भी क्यों न जाएँ मन को शांति जरूर मिलती है। इसी कारण से लोग मंदिर जाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है की क्यों हम मंदिर में नंगे पैर जाते हैं, क्यों पूजा करने के दौरान घंटी को बजाई जाती है , पूजा के बाद क्यों परिक्रमा किया जाता है? आज हम ऐसे ही कुछ नियम के वैज्ञानिक कारण जानेंगे।
१) मंदिर के स्थान और संरचना के पीछे का वैज्ञानिक कारण:
जब भी कोई मंदिर की रचना होती है तो सबसे पहले उस जगह को चुना जाता है जहाँ सकारात्मक ऊर्जा व्याप्त होती है। जिस जगह पे उत्तर की ओर से सकारात्मक चुम्बकीय और विद्युत तरंगों का प्रभाव हो। इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण है की जब भी लोग इन जगहों पे आएं तो उनके शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
२) नंगें पैर क्यों आते हैं?
हमने देखा है की जब भी हम मंदिर जाते हैं तो हम अपने चप्पल और जूते-मौजे दोनों को बहार उतारते है और नंगें पैर मंदिर में प्रवेश करते हैं। वैज्ञानिक तर्क के अनुसार मंदिर के फर्शों को पुराने समय से लेकर अब तक इस प्रकार बनाया जाता है ये इलेक्ट्रिक और मैग्नैटिक तरंगे का सबसे बड़ा स्त्रोत हो। और जब कोई इस पे नंगे पाँव चले तो अधिक सकारात्मक ऊर्जा पाँव के द्वारा शरीर में व्याप्त हो।
३) प्रवेश के समय घंटी को बजाना:
जब हम मंदिर में प्रवेश करते हैं तब द्वार पे स्थित घंटी को बजाते हुए प्रवेश करते हैं। जब हम घंटी को बजाते है तब उसकी गूंज ७ सेकेंड तक बनी रहती है जो श्री में स्थित सात हीलिंग सेंटर्स को सक्रीय करती हैं।
४) भगवान की मूर्ति का गर्व गृह में स्थित होना:
नादिर में स्थित मूर्ति हमेशा गर्व गृह के मध्य भाग में स्थित होती है। क्योंकि ये माना जाता है की पूरी मंदिर में सबसे अधिक ऊर्जा इस भाग में होती है। जहाँ सकारत्मक ऊर्जा का प्रभाव होता है और नकारत्मकता दूर भागती है।
५) पुष्प अर्पण करने का कारण:
जब भी हम पुष्प का अर्पण करते हैं तो इससे मंदिर के पुरे परिसर में भीनी-भीनी खुशबु का प्रभाव होता है। तथा अगरबत्ती, कपूर तथा पुष्प की सुगंध से सूंघने की शक्ति बढ़ती है। और हमारा मन प्रसन्न होता है।
६) आरती लेते वक्त अपने हाथों को दिए के ऊपर घुमाना:
जब हम आरती लेते वक्त दिए या कपूर के ऊपर हाथों को घुमाते हुए शीश और आँखों को स्पर्श करते हैं तो हलके गर्म हाथों से दृष्टि इन्द्रियां सक्रीय होती हैं।
७) मंदिर की परिक्रमा के पीछे का वैज्ञानिक कारण:
पूजा करने के पश्च्यात परिक्रमा करने का रिवाज है। परिक्रमा लोग अपने इच्छाओं के अनुसार करते हैं। लेकिन जब हम परिक्रमा करते हैं तब चरों और बने सकारत्मक ऊर्जा हमारे अंदर व्याप्त होती है और मन को शांति का अनुभव होता है।