जीवन मे खुश न होने का मुख्य कारण मन की अशांति है हम आज एक साधारण प्रसंग के द्वारा समझेगे की किस तरह हम ध्यान के द्वारा अपने मन को शांत कर सकते है |
महात्मा बुद्ध जी अपने एक शिष्य के साथ वन में भ्रमण करते हुए कहीं जा रहे थे। बहुत दूर तक चलने से वे दोनों थक गए और वो दोपहर में एक पेड़ के नीचे आराम के लिए रुक गये | उन्हें प्यास भी लग रही थी। वहां निकट ही एक पहाड़ी स्थित थी, वहा एक झरना भी था।
इसलिए शिष्य झरने के पास पानी लेने के लिए गया। जब शिष्य झरने के पास तक पहुंचा तो उसने देखा कि अभी कुछ जानवर पानी से दौड़कर निकले हैं, जिस कारण पानी गंदा हो गया था | झरने के पानी में कीचड़ ऊपर आ गया था | पानी पीने लायक प्रतीत नही हो रहा था।
गंदा पानी की कारण शिष्य पानी लिए बिना ही बुद्ध जी के पास वापस आ गये | शिष्य ने बुद्ध जी को पूर्ण: विवरण दिया और बताया कि वह अब झरने से नही बल्कि नदी से पानी लेकर आएगा। किंतु नदी वहां से बहुत दूर थी, इसलिए बुद्ध जी ने उससे कहा कि तुम उसी झरने से पानी लेकर आओ।
शिष्य पुन: झरने के पास गया तो उसने देखा कि जल अभी भी पीने लायक नही है और उसमे अभी भी गंदगी है। वह फिर से बुद्ध के पास लौट गया | महात्मा बुद्ध गुरु जी ने शिष्य को पुन: से उसी झरने से जल लाने के लिए कहा।
एक बार फिर से शिष्य झरने के पास गया तो फिर उसने देखा कि अब भी पानी बिल्कुल शांत और साफ हो चुका है। उस शुद्ध पानी लेकर वह महात्मा बुद्ध जी के पास लौट आया। महात्मा बुद्ध जी ने इस प्रसंग से शिष्य को समझाया कि जीवन की भाग-दौड़ के कारण हमारा मन भी झरने के पानी की जैसे ही अशांत हो जाता है, जिस कारण क्रोध तथा मानसिक तनाव बढ़ता है। यदि शांति चाहते हैं तो हमें भी कुछ देर मन को शांत और एकांत में छोड़ देना चाहिए अर्थात् प्रतिदिन ध्यान करना चाहिए। ध्यान करते समय हमे किसी प्रकार के विचार और सुख-दुख का स्मरण नही करना चाहिए | यदि हम रोज ध्यान करेंगे तो कुछ समय बाद हमे भी मान की शांति का अनुभव प्राप्त होगा |