कालाष्टमी जिसे हम काला अष्टमी के नाम से जाना जाता है। ये प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है। आइये आज हम जाने इसकी शुरुआत कैसे हुई और किस प्रकार इस दिन व्रत किये जाते हैं।
इस दिन भगवान शिव के भैरव रूप की पूजा की जाती है। इस पूजा से सारे परेशानियां और बाधाओं का नाश होता है।
कालाष्टमी की कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार श्री हरी विष्णु और ब्रह्म देव के बीच श्रेष्ट कौन है इसके लिए विवाद उत्पन्न हो गया। उसी समय एक बहुत बड़ा अग्नि लिंगा उनके समक्ष उत्पन्न हुआ। और उसमे से आवाज आई की जो इस अग्निलिंग के अंत को पा लेगा वो श्रेष्ट होगा। इसलिए ब्रह्म देव ने ऊपर के छोर की ओर तथा विष्णु देव ने निचे की छोर की और भ्रमण करने लगे। लेकिन दोनों को अंत कही नहीं दिखा। तभी ब्रह्म देव ने श्री हरी से मिथ्या कहा की उन्हें इसका आंत मिल गया, और विष्णु देव ने अपने हार को स्वीकारा। तभी भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने कहा ये झूट है। लेकिन ब्रह्म देव ने इसे नहीं स्वीकारा। तब शिव ने काल भैरव का रूप धारण किया ब्रह्म देव को दण्डित करने के लिए। और भैरव के रूप को धारण करने के बाद उन्होंने ब्रह्म देव के पांचवें सिर को काट दिया तब ब्रह्म देव को उनके गलती का एहसास हुआ। तत्पश्च्यात ब्रह्म देव और विष्णु देव के बीच विवाद ख़त्म हुआ और उन्होंने ज्ञान को अर्जित किया जिससे उनका अभिमान और अहंकार नष्ट हो गया।
भैरव जी का स्वरुप:
भैरव जी स्वान पर सवार रहते हैं तथा उनके हाथ में एक दंड रहता है। इस दंड के होने के कारण इन्हें दण्डाधिपति के नाम से भी जाना जाता है।
काल भैरव पूजा:
कालाष्टमी का व्रत धार्मिक ग्रन्थ के अनुसार जिस दिन अष्टमी तिथि रात्रि के दौरान बलवान होती है उस दिन कालाष्टमी का व्रत करना चाहिए।
काल भैरव मंत्र:
“ह्रीं वटुकाय आपदुद्धारणाय कुरुकुरु बटुकाय ह्रीं”
“”ॐ ह्रीं वाम वटुकाय आपदुद्धारणाय वटुकाय ह्रीं””
“ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं हरिमे ह्रौं क्षम्य क्षेत्रपालाय काला भैरवाय नमः”
काल भैरव पूजा के लाभ:
१) भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
२) नकारात्मक ऊर्जा, बीमारियां दूर होती है।
३) सारी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
ये समस्त जानकारियां शास्त्र के अनुसार है|
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