रंग पंचमी होली का ही एक रूप है जो देश एवं विदेश के कई क्षेत्रों में चैत्र मास की कृष्ण पंचमी को मनाया जाता है। दरअसल होली का जश्न कई दिनों तक चलता है फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के पश्चात अगले दिन सभी लोग उत्साह में भरकर रंगों से खेलते हैं। रंगों का यह उत्सव चैत्र मास की कृष्ण प्रतिपदा से लेकर पंचमी तक चलता है। इसलिये इसे रंग पंचमी कहा जाता है।
रंग पंचमी कोकण क्षेत्र का खास त्यौहार माना जाता है पर्व को लेकर यह मान्यता है कि इस दिन जो रंग एक दूसरे को लगाये जाते है और हवा में उडाये जाते है उन्हें देख कर देवता आकर्षित होते है और अपना आशीर्वाद देते है माना जाता है कि रंगों से हमारे वातावरण में येसी स्थिति व्याप्त होती है जिससे तमोगुण (अंधकार, अज्ञान आदि गुण) और रजोगुण (भोग विलास और राजसी ठाठ बाठ) का नाश हो जाता है हमारी धार्मिक मान्यताओ के अनुसार यह पर्व देवताओं को समर्पित होता है इस दिन लोग सड़कों पर जुलूस निकालते है राजस्तान के जैसलमेर मंदिर महल में इस पर्व को बड़े जश्न के साथ मनाया जाता है महाराष्ट्र में तो होली को ही रंग पंचमी कहा जाता है। इसके पीछे की मान्यता यह है कि इस दिन जो भी रंग इस्तेमाल किये जाते हैं जिन्हें एक दूसरे पर लगाया जाता है हवा में उड़ाया जाता है उससे विभिन्न रंगों की ओर देवता आकर्षित होते हैं। साथ ही माना जाता है कि इससे ब्रह्मांड में सकारात्मक तंरगों का संयोग बनता है व रंग कणों में संबंधित देवताओं के स्पर्श की अनुभूति होती है।
रंगवाली होली यानि धुलंडी से लेकर पंचमी तिथि तक जमकर होली खेली जाती है। रंग पंचमी इस पर्व का अंतिम दिन होता है। यह माना जाता है कि यह मछुआरों के लिये भी बहुत खास दिन होता है इस दिन सब नाचने गाने में मस्त होते हैं। रंग पंचमी पर एक विशेष प्रकार का मीठा पकवान घरों में बनाया जाता है जिसे पूरनपोली कहा जाता है। जगह-जगह पर दही-हांडी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं जिसमें महिलाएं मटकी फोड़ने वालों पर रंग फेंकती हैं ताकि वे अपने उद्देश्यों में सफल न हो सकें। जो भी मटकी फोड़ने में कामयाब होता है उसे पुरस्कार से नवाज़ा जाता है और वह होली किंग ऑफ द ईयर कहलाता है।
रंगपंचमी अनिष्टकारी शक्तियों पर विजय प्राप्ति का उत्सव भी माना जाता है मान्यता है कि रज-तम के विघटन से दुष्टकारी या कहें पापकारी शक्तियों का नाश भी इस दिन होता है।