मनुष्य को शांति और आनंद का अनुभव तभी हो सकता है जब कि वह अपने आप को सत्ता सामान्य मे स्थित कर लेता है | जब तक मनुष्य विकारवान नाना पदार्थो मे अपना अहनभाव रखता है तब तक उसे शांति और परमानंद की प्राप्ति नही हो सकती | इस विषय पर वासिष्ठ जी ने रामचंद्र जी ने उपख्यन सुनाया जो इस प्रकार है –
गंदमादन पर्वत पर उद्धालक नाम का एक युवक मुनि वास करता था | एक समय उसके मान मे यह विचार उत्पन्न हुया की अभी तक उसको शांति और आनंद का अनुभव नही हुया उसके लिए प्रयत्न करना चाहिए, क्योकि मनुष्य जीवन का परम उद्देश् वही है | इंद्रियो के भोग भोगने से मनुष्य को कभी तृप्ति नही हो सकती |