गंगा नदी का उल्लेख बड़े पैमाने पर वेद, पुराणों, महाकाव्यों रामायण और महाभारत में किया है|
राजा बलि एवं गंगा मा
भगवान विष्णु समय समय पर इस प्रथ्वि पर १० अवतारो है मे प्रकट होते रहे है| अलग अलग अवतारो मे वो हर बार दुष्ट पपियो से हमारी रक्षा करते आए है| इन्ही अवतारो मे से एक था ब्रम्हिन अवतार जिसमे वो बोने ब्रम्हन के रूप मे प्रथ्वि पर प्रकट हुए थे|
बलि चक्रवर्ती बहुत ही शक्तिशाली एवं धनवान राक्षस राजा था| साथ ही साथ वो भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त भी था| उसकी दिन पे दिन बढ़ती शक्ति को देखकर इंद्र देव भी घबराने लगे की कही उनकी स्वर्ग की सत्ता ना चली जाए| इंद्र भगवान विष्णु के पास मदद माँगने पहुच गये|
बड़े बड़े यग्यो मे बलि जैसे राजा, ब्रम्हिन जो भी माँगे उन्हे दान मे दे देते थे| भगवान विष्णु बोने ब्रम्हिन के रूप मे राजा बलि के यहाँ पहुच गये, पर राजा बलि को उनके गुरु शुक्राचार्य ने सावधान कर दिया था की यह ब्रम्हिन भगवान विष्णु है, पर राजा बलि जो एक बार बोलने के बाद पीछे हटने वालो मे से नही था उसने बोने ब्रम्हिन के सामने झुक के उन्हे प्रणाम किया ओर ब्रम्हिन से पुछा की उन्हे क्या चाहिए|ब्रम्हिन ने राजा से ३ कदम ज़मीन माँगी| राजा तुरंत ही राज़ी हो गया ओर ब्रम्हिन से नापने को कहा तभी अचनाक ब्रम्हिन ने विशाल रूप ले लिया जिसे त्रिवीकर्मा कहा गया|
एक कदम मे उन्होने सारी धरती, दूसरे कदम मे सारा आसमान पर तीसरे कदम के लिए कुछ बचा ही नही था तो राजा बलि ने वो कदम अपने सिर पर रखने का आग्रह किया उस कदम से त्रिवीकर्मा ने उसे पाताल लोक मे धकेल दिया| जब त्रिवीकर्मा का का पेर आसमान मे था तब भगवान ब्रम्हा ने उसे पानी से धो कर कमंडल मे भर लिया ओर यही पवित्र पानी ब्रम्हा की पुत्री गंगा बना|
दुर्वासा का श्राप
गंगा भगवान ब्रम्हा की देखरेख मे खेलते हुए बड़ी हुए| एक किवदंती के अनुसार ऋषि दुर्वासा स्नान करने गये हू थे तभी तेज हवा से उनके सारे वस्त्र उड़ गये|गंगा वही पास मे सब देख रही थी ओर ओर वो अपनी हसी को रोक नही पाई| यह देख ऋषि दुर्वसा को क्रोध आ गया ओर उन्होने गंगा को श्राप दे दिया की उन्हे प्रथ्वि पे एक नदी के रूप मे रहना होगा जिसमे सभी पवित्र होने के लिए डुबकी लगाएगे|
गंगा का प्रथ्वि पे आगमन
यैसा कहा जाता है की राजा सागर ने शक्तिशाली होने के लिए अपने महान अस्व (घोड़े) की आहुति दी थी जिसे अस्वमेध यज्ञ भी कहा जाता है| यह देख कर देवताओ के राजा इंद्र डर गये ओर उनका सिंघासन हिल गया| इंद्र ने उस अश्व को चुरा कर ऋषि कपिल के आश्रम मे बाँध दिया| जब अश्व नही मिला तो राजा सागर के ६०.००० पुत्र उसे खोजने निकल गये ओर उन्हे वो ऋषि कपिल के आश्रम पे मिला| यह ऋषि कपिल ने किया हे यह मानते हुए वो उसे मुक्त करने लगे इस सबके बीच ऋषि का ध्यान भंग हो गया, जब उन्हे पता चला के राजा के पुत्रो ने ये सोचा है की उन्होने उसे चुराया इस से उन्हे क्रोध आ गया ओर उन्होने सबको जला के राख कर दिया|
मृत्यु क्रिया संपूर्ण होने से पूर्व ही वो राख मे बदल गये जिस से वो भूत के रूप मे भटकने लगे| अंतिम बचे हुए भाई, अंशुमन ने ऋषि से क्षमा याचना की उनके भाइयो की मुक्ति का पथ प्रदर्शित करे तब ऋषि ने कहा एक ही रास्ता है इनकी अस्थियो का गंगा मे विशर्जन किया जाए ओर गंगा को भगवान ब्रम्हा से प्राथना करके ही प्रथ्वि पे लाया जा सकता है|
बहुत पीडिया बीत जाने के बाद राजा सागर के वसंज, भागीरथ ने वर्षो तक तप किया| भगवान ब्रम्हा उनके तप से खुस हो कर गंगा को प्रथ्वि पे भेजने का उनका वरदान पूरा किया| गंगा एक बहुत ही शक्तिशाली नदी थी| उन्होने निश्चय किया की वो नीचे आएगी ओर उनके रास्ते मे जो भी आएगा उसे समाप्त कर देगी, पर भगवान शिव उनकी इस सोच से सचेत थे ओर उन्होने गंगा को उलझा के क़ैद कर लिया|
फिर भागीरथ ने भगवान शिव से प्राथना की तब उन्होने धीरे धीरे गंगा को प्रवाहित किया ओर वो प्रथ्वि पर भागीरथी कहलाई| अस्थियो की तरफ जाते हुए उन्होने ऋषि जान्हु के आश्रम को मिटा दिया, ओर गुस्से मे आकर ऋषि ने उन्हे क़ैद कर लिया| भागीरथ को फिर से गंगा को मुक्त करने के लिए ऋषि से प्राथना करनी पड़ी| जब वो प्रवाहित हुए तब वो फिर जान्हवी कहलाई| इस तरह से मा गंगा प्रथ्वि पर प्रवाहित होती है ओर हम उनमे श्रधा की डुबकी लगते है|