सिंहस्थ मध्य-प्रदेश के उज्जैन मे २२ अप्रैल से शुरू होने वाला हैं जो २१ मई तक चलेगा| और इसे शुरू होने मे सिर्फ़ और सिर्फ़ १० दिन बाकी हैं| तो इसलिए इस सबसे बड़े धर्म के मेले मे दूर-दूर से भाग लेने के लिए सभी साधु-संत यहाँ आ चुके हैं और कुछ आने वाले हैं| तो हम आपको बताते चले की सबसे पहला सही स्नान २२ अप्रैल को हैं जो चैत्र पूर्णिमा के दिन होगा| इस महाकुंभ मे 7 शैव और 3 वैष्णव अखाड़ों द्वारा उनके हज़ारों साधुओं को नागा बनाने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी| जिसे खूनी नागा के नाम से जाना जाता है| तो चलिए आज हम आपको इसके बारे मे बताएँगे|सबसे पहले जब कोई नागा बनता हैं तो उसे खूनी नागा के नाम से संबोधित किया जाता हैं या उन्हें खूनी नागा के नाम से जाना जाता हैं|
क्यों खूनी नागा के नाम से जाना जाते हैं?
अखाड़ों के नियमानुसार जब भी किसी को नागा साधु बनाया जाता है तो उन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ हरिद्वार और उज्जैन मे होने वाले कुंभ मे ही नागा साधु की दीक्षा दी जाती हैं| जब हरिद्वार के कुंभ मे किसी को नागा साधु की दीक्षा दिया जाता है तो उन नागा साधु को बर्फानी नागा ने नाम से संबोधित किया जाता हैं और जब यही प्रक्रिया उज्जैन के कुंभ मे संपन्न होती हैं तब उन्हें खूनी नागा के नाम से जाना जाता है, जिसका तात्पर्य ये है की ऐसे नागा साधु जो धर्म की रक्षा के लिए अपने खून को बहाने मे कभी भी पीछे नही हटेंगे| ऐसे नागा साधु को एक सैनिक की तरह तैयार किया जाता हैं|
नागा साधु किस प्रकार बनते हैं?
नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन होती हैं किसी भी आम आदमी के लिए क्योंकि नागा साधु बनने मे बहुत सारी कठिनाई और चुनौती का सामना करना पड़ता हैं| सबसे पहले नागा साधु बनने के लिए अपना पिंड दान करना ज़रूरी होता हैं| वैसे अलग-अलग नियम होते है अलग अलग अखाड़ों मे| लेकिन कुछ नियम ऐसे भी होते हैं जो सभी दशनामी अखाड़ों मे एक समान होते हैं|
चलिए आज हम आपको ऐसे ही कुछ नियम बताते हैं जो नागा साधु बनने के लिए पालन किए जातें हैं:
१) जाँच-पड़ताल(तहकीकात):
सबसे पहले जब भी कोई नागा साधु बनने के लिए आता हैं तो कोई भी अखाड़ा हो सबसे पहले उस व्यक्ति के बारे मे सभी तरह का जाँच-पड़ताल किया जाता हैं| तभी उस व्यक्ति को अखाड़ा मे पनाह(प्रवेश) दिया जाता है|
२) ब्रह्मचर्य की परीक्षा:
जब कोई भी अखाड़ा मे प्रवेश हो जाता है तब दूसरी प्रक्रिया शुरू होती हैं जिसे ब्रह्मचर्य प्रक्रिया कहा जाता हैं| जिसमे उस व्यक्ति की ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती हैं| इसके बाद ही उसे अगली प्रक्रिया मे जगह मिलती हैं|
३) 5 गुरु का बनना:
जब ब्रह्मचर्य की परीक्षा पूरी होती है तब उसके बाद उस व्यक्ति को ब्रह्मचर्य से महापुरुष बनाने की प्रक्रिया पूरी की जाती हैं इस प्रक्रिया के दौरान उनके 5 गुरु (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और श्री गणेश) बनाए जाते हैं|
४) पिन्डदान और श्राद्ध की प्रक्रिया:
जब कोई महापुरुष बन जाता हैं तब उसके बाद उन नागा साधु को अवधूत बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है जिसमे साधक खुद अपने ही हाथों से अपना पिन्डदान व श्राद्ध करते हैं|
५) इस प्रकार बनते हैं नागा:
पिन्डदान और श्राद्ध की प्रक्रिया ख़त्म होने के बाद साधु को अखाड़ा के ध्वज के नीचे खड़ा कर दिया जाता हैं और उसके बाद लिंग की नस को खींचकर उसे नपुंसक कर दिया जाता हैं| इसके बाद वो साधक नागा दिगंबर हो जाता हैं|
६) गुरु मंत्र मे विश्वास:
ये सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद या यू कहें दीक्षा के तदोप्रान्त प्रत्येक साधक को एक गुरु मंत्र दिया जाता हैं जिसमे प्रत्येक को विश्वास और आस्था रखनी पड़ती हैं क्योंकि उसके बाद उनका भविष्य उनके गुरु मंत्र पर ही टिका होता हैं|
७) वस्त्र का त्याग करना:
अखाड़ों के नियमानुसार कोई भी साधक नागा साधु बनने के बाद वस्त्र का वरण नही कर सकते| और अगर वो वस्त्र का वरण करते हैं तो सिर्फ़ और सिर्फ़ गेरुए रंग के वस्त्र को धारण(वरण) कर सकते हैं|
८)भूमि या धरती पर सोना:
कोई भी नागा साधु होने के बाद कभी भी सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी भी साधन का प्रयोग नही कर सकते| वे सिर्फ़ और सिर्फ़ सोने के लिए ज़मीन का ही प्रयोग करते हैं|
९) अन्य नियम:
कभी भी नागा साधु हमेशा बस्ती के बाहर ही सोते हैं| और उनके नियमानुसार कोई भी नागा साधु सिर्फ़ संन्यासी को ही प्रणाम कर सकते हैं, अन्य किसी को भी नही| ये नियम सभी नागा साधु के लिए मान्य होता है|