हर एक महीने में एकादशी दो होती है। और यदि किसी वर्ष अधिमास हो तो उस वर्ष 26 एकादशी होता है। कल विजया एकादशी है। आज हम जानेंगे विजया एकादशी के विधि और महत्त्व।
एकादशी जिसका अर्थ है चंद्र मास की ग्यारहवीं तिथि। चंद्र माह जिसके दो भाग होते है। पहला कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष के ग्यारहवीं तिथि को ही एकादशी तिथि के नाम से जाना जाता है। महीने और पक्ष के अनुसार ही इस व्रत के कई नाम रखे गए हैं। जिसमे से फाल्गुन महीने की एकादशी को ही विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है।
विधि विजया एकादशी व्रत के:
शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है की एकादशी जिसका व्रत करने से ही स्वर्ण, भूमि, गौ तथा अन्न दान करने जितना पुण्य प्राप्त होता है। सभी एकादशी के दिन श्री हरी की पूजा की जाती है।
सात धान्य घट की स्थापना इस एकादशी के दिन किया जाता है। इन धान्यों में गेहूं, उड़द, चावल, मूंग, जौ, मसूर तथा चना का उपयोग किया जाता है। इनसे धान्यों का निर्माण करके इनके ऊपर ही श्री हरी को स्थापित किया जाता है। यदि कोई मनुष्य इस व्रत को करता है तो उसे पूरे दिन एकादशी का व्रत करने के बाद रात्रि में श्री हरी का पाठ करते हुए जागरण रखना पड़ता है। यदि हम व्रत के पहले भोजन की बात करें तो व्रत के एक दिन पूर्व सात्विक भोजन को ग्रहण करना चाहिए।ये व्रत करने के दूसर दिन अर्थात द्वादशी तिथि को प्रातः कल उठाकर स्नान करके एक अन्न से भरे घड़े को ब्राह्मण को दान किया जाता है। इस वृत को करने से जीवन के हर एक कष्टों और समस्या में विजय प्रदान करती है इसलिए इसे विजया एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है।
पूजन सामग्री:
व्रत पूजन में धूप, दिप, नैवेध एवं नारियल का प्रयोग मुख्यता किया जाता है।
लाभ:
१) इस व्रत के करने से मनुष्य को शुभ फल की प्राप्ति होती है।
२) सभी पाप कर्म का नाश होता है।
३) यदि कोई मनुष्य सच्ची मन से इस व्रत को करता है तो इससे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।