गंगा जिन्हें हम माता के रूप में पूजते हैं, उनका आदर करते हैं। आज हम जानेंगे की क्यों हम अपने प्रिय या किसी के भी अस्थियों को पतित पावनी गंगा में विसर्जित करते हैं।
शास्त्रों के अनुसार मरे हुए जीव की अस्थियों को फूल कहा जाता है। जिसपे हमें आपार श्रद्धा और आदर का भाव रहता है। जिस प्रकार हम हमारे संतान को फल के रूप में मानते हैं उसीप्रकार पूर्वजों की अस्थियों को फूल के रूप में माना जाता है।
अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने का कारण:
कर्म पुराण में उल्लेखित है कि
यावदस्थीनि गंगायां तिष्ठन्ति पुरुषस्य तु।
तावद् वर्ष सहस्त्राणि स्वर्गलोके महीयते।।
तीर्थानां परमं तीर्थ नदीनां परमा नदी।
मोक्षदा सर्वभूताना महापातकिनामपि।।
सर्वत्र सुलभा गंगा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा।
गंगाद्वारे प्रयागे च गंगासागरसंगमे।।
सर्वेषामेव भूतानां पापोपहतचेतसाम्।
गतिमन्वेषमाणानां नास्ति गंगासभा गति:।।
जिसका अर्थ है जितने समय तक किसी भी जीव कि अस्थियां गंगा में रहती हैं उतने सालों तक उस जीव को स्वर्ग में पूजा जाता है। सभी तीर्थों में गंगा को परम तीर्थ स्थल और सभी नदियों में श्रेष्ठ नदी के रूप में माना जाता है। इस गंगा में आने वाले सभी जीव चाहे वो दैत्य या महापापी ही क्यों न हो उन सभी को मोक्ष कि प्राप्ति होती हैगंगा जिन्हें हम माता के रूप में पूजते हैं, उनका आदर करते हैं। आज हम जानेंगे की क्यों हम अपने प्रिय या किसी के भी अस्थियों को पतित पावनी गंगा में विसर्जित करते हैं।
शास्त्रों के अनुसार मरे हुए जीव की अस्थियों को फूल कहा जाता है। जिसपे हमें आपार श्रद्धा और आदर का भाव रहता है। जिस प्रकार हम हमारे संतान को फल के रूप में मानते हैं उसीप्रकार पूर्वजों की अस्थियों को फूल के रूप में माना जाता है।
धार्मिक कारण:
शास्त्र के अनुसार कहा गया है कि
यावदस्वीनि गंगायां तिष्ठिन्ति पुरुषस्य च।
तावदूर्ष सहस्त्राणि ब्रहमालोके महीयते।।
जिसका अर्थ है जब तक मृतक जीव के अस्थि गंगा में उपस्थित है तब तक उसे शुभ लोकों में आनंद कि प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि जब तक किसी मृत जीव कि अस्थियां को माँ गंगा में प्रवाहित नहीं किया जाता तबतक उसे परलोक कि प्राप्ति नहीं होती है।
गंगा में ही क्यों प्रवाहित किया जाता है?
हिन्दू संस्कृति में गंगा को सबसे ज्यादा पवित्र माना गया है। हरिद्वार में स्थित हर एक पौढ़ी पे कपाल क्रिया और अस्थि विसर्जन कि प्रक्रिया कि जाती है। इसके पीछे का कारण है कि माँ गंगा को स्वर्ग कि नदी माना जाता है। जिसे भगीरथ ने अपनी तपस्या से इन्हें धरती पे लाए थे। कहा जाता है कि भले ही गंगा समुद्र में मिल जाती है, लेकिन समय प्रवाहित पूर्वजों कि अस्थियां सीधे पितरों को स्वर्ग में जगह प्रदान करती है।
पाँच तत्व से जुड़ी मान्यता:
शास्त्र अनुसार हमारा शरीर पाँच तत्वों से मिलकर बना होता है और इसी शरीर को मृत होने पे जलने से पूर्व शरीर में स्थित आत्मा आकाश तत्व में विलीन हो जाती है, उसके बाद शरीर को जलाने से अग्नि तत्व, धुएं से वायु और राख से भूमि तत्व में शरीर विलीन हो जाता है। इसी कारण से बचे हुए तत्व जल के लिए हम अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जाता है।
वैज्ञानिक कारण:
अस्थियों को गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। गंगा नदी के द्वारा सैकड़ों मील भूमि को सींचकर उपजाऊ बनाया जाता है। जिससे नदी में स्थित उपजाऊ शक्ति ख़त्म होती है। ऐसे में गंगा में फॉस्फोरस युक्त खाद हमेशा बना रहे इसलिए अस्थियां को नदियों में प्रवाहित किया जाता है।
ये समस्त जानकारियां शास्त्र के अनुसार है|
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