जाने क्यों इस मंदिर में पूजा करने पे बन जायेंगे हम श्राप के भागी

विश्व में विभिन्न धर्मों में विभन्न तरीकों से लोग पूज अर्चना करते हैं। क्योंकि माना जाता है की उन धार्मिक सालों पे स्वयं ईश्वर वश करते हैं। इन धार्मिक स्थलों पे जा के लोग उस परम पिता परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है की हिन्दू धर्म में एक ऐसा मंदिर भी है जहाँ केवल आप या हम सभी लोग सिर्फ दर्शन कर सकते हैं, उनकी पूजा नहीं कर सकते हैं। आइये आज हम उसी मंदिर के बारे में जानेंगे की क्या कारण है की हम उस मंदिर में पूजा नहीं कर सकते हैं।

हिन्दू धर्म में पुरानी सदी से लेकर आज तक हम मंदिर में जा के दिये प्रज्वलित करके, ईश्वर को भोग लगाके और धुप बत्ती से भगवान की पूजा करते हैं। ताकि भगवान की कृपा हमेशा हमारे ऊपर बनी रहे।

 

श्रापित मंदिर:

लेकिन अगर कोई ये कहें कि एक मंदिर ऐसा भी है जहां अगर कोई पूजा करता है तो वह श्राप का भागी बन जाता है…. तो हमें विश्वास नहीं होगा। लेकिन उत्तराखंड में एक ऐसा ही मंदिर है जो पिथौरागढ़ में स्थित है। इस मंदिर में अगर कोई व्यक्ति पूजा करता है तो वह श्राप का भागी बन जाता है।

उत्तराखंड के इस मंदिर का नाम है हथिया देवाल, जिस जगह भक्त शिवलिंग के दर्शन ही कर सकते हैं, उनकी पूजा नहीं। ये मंदिर प्राचीन काल से ही उपस्थित है जो की भगवान शिव को समर्पित है। ये मंदिर प्राचीन वास्तुकला से निर्मित है।

 

पौराणिक कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार पिथौरगढ़ में कत्यूरी नाम का एक राजा राज करता था, जो स्थापत्य कला को ही अत्यधिक महत्त्व प्रदान करता था। इस कारण से उसने अपने राज्य में एक मंदिर का निर्माण कराया जिसे एक कुशल कारीगर ने बहुत ही अच्छे तरीके से उस मंदिर को बनाया। कहा जाता है की बनाने वाले कारीगर के एक ही हाथ थे, क्योंकि उसका दूसरा हाथ किसी दुर्घटना के दौरान टूट गया था। इसी कारणवश जब भी वो मूर्ति का निर्माण करता था, उसे देख कर अन्य लोग उसका खूब मजाक बनाते थे। ऐसा अपमान अपने साथ होते देख उसने प्रण लिया की केवल मूर्ति ही नहीं बल्कि उसके साथ पूरा-का-पूरा मंदिर भी वो अकेला ही बनाएगा।

इसके बाद उसने अपने प्रण के अनुसार उसने अपने एक हाथ से ही पूरी चट्टान को काटा और हथिया देवाल शिव मंदिर की स्थापना किया। कहा जाता है की उसने मंदिर का निर्माण केवल एक रात में ही संपन्न किया और अपने द्वारा बनाये गए शिवलिंग को उसने उस मंदिर में स्थापित किया। लेकिन शिवलिंग में प्राण-प्रतिष्ठा नहीं हो पाया। प्राण प्रतिष्ठा नहीं होने के कारण ही यह मंदिर पूजनीय नहीं रह पाया। परंपरा के अनुसार वहां के लोगों में ये मान्यता फैल गई की इस मंदिर में पूजा करना अशुभ है और अगर कोई इस मंदिर में पूजा करता है तो वह श्राप का हक़दार बन जायेगा।